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CH1

चारों ओर गहरा अंधेरा था। हवा में जले हुए लोहे और पुराने तेल की गंध घुली हुई थी। उस सुनसान फैक्ट्री में सिर्फ मशीनों की जंग डरावनी आवाज़ और धड़कनों की गूंज थी।

एक लड़की, जिसकी आंखों पर पट्टी थी और हाथ-पैर कसकर एक टूटी हुई कुर्सी से बांधे गए थे, धीरे-धीरे होश में आ रही थी। गला सूखा हुआ था, लेकिन डर और सवालों से भरा।

तभी वहां कुछ कदमों की आवाज़ गूंजी। जैसे कोई पुराना और जंग लगा गेट गोला गया हो। और कुछ लोगों की कदमों की आवाज वहां गूंजने लगे।

निशा हा ये लड़की और कोई नहीं निशा थी, उसे जब वहां किसी के होने का एहसास होता है तो अपनी आँखें खोलती है तो सामने खड़े थे वो लोग जो उसके अपने थे। 

प्राची, उसकी सौतेली बहन, जो हमेशा उससे जलती थी।

निया सहाय, जिसने उसकी मां की पहचान छीन ली, एक ऐसी औरत जिसने अपनी खुद की बहन की जिंदगी और उसका घर उजाड़ दिया और उसकी मां ये सदमा सह नहीं पाई और हमेशा के लिए उसे इस भयानक दुनिया में अकेला छोड़ दिया।

और उसके चाचा-चाची, जिनकी आंखों में गुस्सा नहीं, बल्कि एक अजीब-सी नफरत थी — जैसे वो उसे मिटा देना चाहते हों।

“हमें लगा था,” चाचा ने गहरी आवाज़ में कहा, “जब तू जेल गई, तो तुझसे और तेरी मां से हमारा पीछा छूट गया। लेकिन देख... तू फिर से आ गई। बिना बुलाए... फिर से हमारे सामने खड़ी है।”

निशा के चेहरे पर कोई हैरानी नहीं थी। सिर्फ एक डर और दर्द था, जो उसकी सांसों को धीमा  कर  रहा था।

“तू वापस नहीं आई हमारे पास, लेकिन हमें ये जानकर अच्छा जरूर लगा लेकिन डैड ने बड़े भाई के बाद तेरे नाम भी वसीयत में हिस्सा लिख दिया,” चाची ने तीखा ताना मारा।

प्राची ने कदम बढ़ाए, और झुककर उसकी आंखों में देखा, “हमने तो सोचा था तू जेल में ही मर जाएगी, लेकिन हमने नहीं सोचा था कि तुम इतनी ढीठ होगी जो इतने साल जेल में बिताने के बाद भी जिंदा हो।

निशा ने कुछ नहीं कहा उसे जेल से आए कुछ महीने ही हुए थे, वो कही और रह रही थी या किसी के साथ जिसने उसे उस वक्त सहारा दिया था।

लेकिन आज पूरे 5 साल बाद अपने इस परिवार को देख रही थी जो उससे जेल में मिलने तक नहीं आए थे यहां तक उसके डैड भी नहीं।

निशा की आंखें अब पूरी तरह डर से भर चुकी थीं, मगर धुंध के बीच से वो सिर्फ धुँआ और आग की लपटें देख पा रही थी। फैक्ट्री की पुरानी दीवारें सुलग रही थीं, और दरवाज़ा—जहां से कुछ देर पहले उसके अपनों ने उसे ठुकरा दिया था—अब बंद हो चुका था।

वो कुर्सी से बंधी थी। लकड़ी की वह कुर्सी धीरे-धीरे गर्म हो रही थी। उसकी साँसें तेज़ हो रही थीं, दिल की धड़कनें आग की लपटों के साथ दौड़ने लगी थीं।

“प्राची, अंकल!! प्लीज़… मत जाओ!!”

उसने चिल्लाकर आवाज़ दी, लेकिन जवाब में सिर्फ गाड़ियों के इंजन की आवाज़ आई—जो इस जलती हुई इमारत से दूर जा रही थी।

उसके आँसू अब उसके चेहरे को भिगो नहीं रहे थे, वो सीधे उसकी रूह तक जलन पहुँचा रहे थे। जिस घर में पली, वहीं उसे जला दिया गया। इस सच्चाई ने उसके दर्द को और अधिक नुकीला बना दिया।

उसी घुटन, उसी आग के बीच अचानक किसी के कदमों की धीमी आहट सुनाई दी।

उसने बड़ी मुश्किल से अपनी आँखें खोली। उसे एक औरत दिख ही थी जो उसे बचाने की कोशिश कर रही थी उसके साथ कुछ लोग और थे लेकिन आग भूत फैल चुकी थी। 

निशा अपनी अधखुली आंखों से उस औरत को देखने की कोशिश कर रही लेकिन वो देख नहीं पा रही थी उसके आंखों के आगे अंधेरा छा रहा था। लेकिन वो फिर भी अपनी आँखें खोलती है और सामने देखती कैसे वो औरत उसे बचाने के लिए स्ट्रगल कर रही है लेकिन उसके लिए कुछ कर नहीं पा रही है।

निशा के बाल आग की लपटों से झुलस चुके थे, होंठ सूख चुके थे, और साँसें अब टूटती सी मालूम पड़ रही थीं। वो पूरी ताकत से ज़िंदा रहने की कोशिश कर रही थी, लेकिन शरीर अब साथ छोड़ता जा रहा था। 

वो अपनी आँखें खोल एक बार और उस औरत को देखने की कोशिश करती है तो उसे उसकी आँखें नजर आती है जो उसे अपनी ओर आकर्षित कर रहा था जैसे उन आंखों के साथ जन्मों का नाता हो उसका।

उसे ऐसा लग रहा था जैसे वो आँखें उसे कह रही हो"नहीं तुम नहीं मर सकती। तुम्हें अपनी बहुत सी जिम्मेदारियां निभानी है, तुम्हे अपने साथ गलत करने वालों से अपना बदला लेना है।" 

वो आँखें चीख चीख कर कह रही थी "तुम नहीं मर सकती निशा, नहीं मर सकती तुम"

वो देख सकती थी कुछ बॉडीगार्ड उस औरत को घर से दूर करने की कोशिश कर रही थे। आग इतनी फैल गई थी कि अब कोई अंदर नहीं आ सकता उसमे वो देख सकती कैसे वो औरत ज़मीन पर घुटनों के बल बैठी है। 

अब वो बाहर भी नहीं देख पा रही उसे अपनी बॉडी में एक तेज जलन का अहसास हो रहा था। वो अपनी आँखें बंद करती है और अब उसके आंखों के सामने उसकी जिंदगी खुले किताब की तरह दिखाई दे रही थी जैसे कोई नया सिस्टम एक्टिवेट हो गया हो उसके अंदर जो अब उस पल को याद करने से उसे अपने सामने खड़े उन सभी लोगों का असली चेहरा दिखाई दे रहा था। जो उसे किसी बेवकूफ की तरह उसे कर रहे थे। और वो उन्हें अपना परिवार मान कर उनके हाथों की कठपुतली बन चुकी थी। 

अब उसे बस इस बात की आस थी कि अगली जिंदगी में पता नहीं उसे अपनी ये जिन्दगी याद रहे या ना रहे लेकिन वो भगवान से प्राथना कर रही थी। की वो दुबारा उसे ऐसे ना बनाए कि कोई भी उसे आसानी से बेवकूफ बना दे उसे अपनी आने वाली जिंदगी में सबसे अपना बदला लेना था।

अपने हर दर्द का बदला जो वो अभी महसूस कर रही है। वो सब को ये दर्द सूट समेत वापस करेगी।

इधर निशा की आंखें अब बंद हो चुकी थीं।

आग अब चारों ओर फैल चुकी थी।

शरीर शांत था… लेकिन आत्मा?

वो जाग चुकी थी।

📍To Be Continued…

क्या ये अंत था? या सिर्फ एक नई शुरुआत?

क्या वो बूढ़ा वाकई कोई अजनबी था… या कोई ऐसा जो उसकी ज़िंदगी से गहरा जुड़ा था?

Reborn in his love

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