
कमरे में हल्का अंधेरा था। खिड़की से बहती हवा परदे को हिला रही थी जैसे रात खुद कोई कहानी कह रही हो। दीवार पर लगी घड़ी ने तीन बजाए थे।
बिस्तर पर एक लड़की बेचैनी से करवटें बदल रही थी। माथे पर पसीना, सांसों की रफ्तार तेज़… और फिर अचानक वो उठ बैठी —जैसे किसी बुरे सपने ने उसे ज़ोर से झकझोर दिया हो। डर और घबराहट से उसके चेहरे पर पसीना आ गया था। उसकी नीली आंखों के समाने उसे वो डरावना मंजर दोबारा दिखाई देने लगा था जैसे वो सब अभी की ही बाते हो कितना सच्चा सा सपना था वो।
तभी उसे एक कॉल आया निशा ने उस नंबर को देखा और झट से कॉल उठाया, उसके चेहरे के एक्सप्रेशन पूरी तरह बदल चुके थे। कोई उसे देख कर कह नहीं सकता था कि अभी यह लड़की इतनी ज्यादा डरी हुई थी। उसके चेहरे के भाव इतने कोल्ड थे की अगर कोई नॉर्मल इंसान देखे तो यही सोचे कि ये छोटी लड़की कितनी डरावनी है।
उसने जल्दी से फोन कॉल उठाया उधर से एक शख्स की आवाज सुनाई थी"बॉस, आपकी मां संध्या मैडम की हेल्थ में गड़बड़ी है और डॉक्टर का कहना है कि उनकी हालत ठीक नहीं है। आप जल्दी से आ जाएं वरना हम उन्हें खो सकते है।
संध्या माहेश्वरी: एक पुराने समय के एक फेमस सिंगर mr. कैलाश माहेश्वरी की बेटी थी जिसने अपने कॉलेज के दिनों में अचानक से सिर्फ 19 साल की उम्र में इंद्रजीत सहाय से शादी कर ली थी। उस समय में इंद्रजीत सहाय के पापा के पास एक छोटी कपड़े की दुकान थी। लेकिन उनकी इतनी इनकम थी कि वो एक अच्छा लाइफस्टाइल अफोर्ड कर सके।
जब निशा 10 साल की उम्र में थी तब अचानक एक दिन इंद्रजीत सहाय एक 8 साल की बच्ची और एक औरत के साथ वापस आए। और उन्हें उस दिन जिंदगी का सबसे बड़ा धोखा मिला था क्योंकि उस बच्ची की मां और कोई नहीं उसकी कजिन निया थी। और उनका पति उन्हें सालों से धोखा देता आया था लेकिन अचानक उनकी इतनी हिम्मत बढ़ गई कि वो उस औरत को घर तक ले आए। इसका सिर्फ एक कारण था उसके ससुर जी शिव सहाय की मौत।
लेकिन... कहानी वहीं खत्म नहीं हुई।
शिवशंकर सहाय — एक सख्त, लेकिन दिल से न्यायप्रिय व्यक्ति। उन्होंने जब पहली बार अपनी पोती को गोद में लिया, तो शायद उन्हें अपने बेटे की गलतियों का एहसास हुआ। क्योंकि उन्हें पहले से पता था कि उसका बेटा उसकी बहु को धोखा दे रहा है। इसीलिए उन्होंने अपने वसीयत पत्र में साफ लिखा —"मेरी प्रॉपर्टी चाहे किसी के नाम हो, उसका 50% हिस्सा मेरी पोती निशा के नाम होगा, जब वो 21 साल की हो जाएगी।"
क्यों?
क्योंकि वो जानते थे,
उनका बेटा उस लड़की और उसकी माँ के साथ न्याय नहीं करेगा। शायद यही वजह थी कि शिवशंकर, जो बाहर से सख्त थे, अपनी पोती को ही अपनी विरासत का हकदार बना गए। लेकिन दूसरी वजह थी संध्या जब उसकी शादी हुई थी तब उनका कोई बड़ा बिजनेस नहीं था उनका बड़ा बेटा बस स्ट्रगल कर था अपना बिजनेस खड़ा करने लिए, और शादी के बाद संध्या ने इस रिश्ते को ईमानदारी से निभाते हुए शिव जी की बहुत मदद की और उनका वो दूकान ऊंचाइयां छूने लगा उसके ideas बहुत अच्छे होते थे। बिजनेस जो आज अच्छा नाम काम रहा था उसमें संध्या की बराबर की मेहनत थी।
संध्या ने अपनी बेटी का बहुत ख्याल रखा था और उसे बड़े नाजों से पाला। संध्या बहुत अच्छा गाती थी और उसे अपने इस टैलेंट के लिए मुंबई एक बड़े स्कूल में सिंगिंग टीचर की जॉब मिल गई और उसने अपनी बेटी को अच्छे से पाला।
लेकिन जब निशा सिर्फ 16 साल की थी, संध्या का एक मेजर एक्सीडेंट हुआ जिससे वो पिछले 2 सालों से कोमा में थी। और अब निशा की बारी थी कि वो अपनी मां का ध्यान रखे।
उसने धीरे से फोन रखा और रेडी होने चली गई। वो शावर के नीचे खरी थी और उसके दिमाग में बस वो सपना चल रहा था "ये सपना… फिर वही आग, वही तड़प… लेकिन इस बार… सब कुछ साफ था।”
उसने शॉवर बंद किया और अपने क्लोसेट में तैयार होने चली गई। वो पिछले कई महीनों से यही सपना देख रही थी जलती हुई फैक्ट्री, धुंआ, घुटन और अकेलापन।
पर आज पहली बार… चेहरों की पहचान साफ थी। और डर… हकीकत जैसा महसूस हो रहा था। वो अपनी इस समय को उस समय से कंपेयर कर रही थी और उसे फील हो रहा था कि अब कोई ड्रामा उसके लाइफ में होने वाला है जिससे उसका लगभग आधा महीना इंटरटेनमेंट में बीतेगा।
अचानक उसके दिमाग में ख्याल आया कैसे लगभग दो दिन पहले उसके पिता को होश आया था कि उसकी एक बेटी है जो बिल्कुल अकेली है। उसकी चिंता हुई तो उन्होंने उसे अपने पास रहने के लिए बुलाया था। उसे एहसास हो चुका था कि उसके लाइफ में एक बड़ा एंटरटेनमेंट आने वाला है।
उसे वक्त वह कुछ ज्यादा ही फ्री तो उसने सोचा क्यों ना इस मौके का फायदा उठाते हुए अपने दो-तीन दुश्मनों को अपने रास्ते से हटा दिया जाए।
आखिर देखा जाए आखिर ऐसा क्या कारण है जो वो शख़्स जिसने इन सालों में उसके और उसके मां की ओर एक बार पलट कर भी नहीं देखा था उसे उसकी इतनी याद आ रही है।
लेकिन आज जो कुछ उसे याद आया था उससे उसके दिल में उनलोगो के लिए नफरत पैदा हो गई थी। अब उसे एहसास हो चुका था कुछ तो होने वाला है आज रात और वो उसके लिए तैयार थी।
उसने धीरे से अपने गले का लॉकेट पकड़ा ये उसकी माँ ने उसे बचपन में दिया था। “जो सही है, वो आसान नहीं होता… और जो आसान होता है, वो हमेशा सही नहीं होता।” माँ की कही ये बात अब याद आ रही थी।
आगे क्या होगा?
क्या इंद्रजीत सहाय का कॉल भरोसे के लायक है? और निशा उस घर में रुक कर सही कर रही थी? ऐसा क्या याद आया था निशा को?
क्या कोई नया तूफान आने वाला है, निशा की जिंदगी में?
और क्या उसका सपना… किसी सच का संकेत था?


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